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स्कूल की घंटी

  • Writer: Admin
    Admin
  • Jun 1, 2020
  • 6 min read

Updated: Jun 21, 2020


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स्कूल की घंटी बजी |

उन दिनों दोपहर को शायद इससे मीठी आवाज़ दुनिया में कोई और नहीं थी | मैडम का पाठ, पंखे की चर्र चर्र और बच्चो की उबासी अचानक ही गुम हो गयी उस अनन्त सास्वत आनंदमयी ध्वनि में | ऐसे पावन अवसर पर एक दुःखद घटना अवश्य होती है - होमवर्क | और आज तो दुखो का पहाड़ टूट पड़ा था | कल मैडम सरप्राइज टेस्ट लेंगी; हिंदी का | चश्मा उतार कर मैडम "राजू ऑप्टिकल्स" के अपने काले कवर में डालते हुए कक्षा से बहार निकल गयी | पीछे छूट गया तो एक कौतुहल जिसमे बहोत सारी "अरे यार" और "Oh No" सम्मिलित थे |

उन दिनों इंग्लिश मिडियम स्कूलों का प्रचलन ऐसे हो गया था जैसे गाँधी जी का "अंग्रेज़ो भारत छोड़ो" आंदोलन आज़ादी के दिनों में हुआ था | मध्यम वर्ग का हर अभिभावक अपने बच्चे से अंग्रेजी में अपने मेहमानो के सामने "twinkle twinkle" गवाना चाहता था | हम जो न कर सके, हमारा बच्चा करेगा | स्कूल में भी हिंदी बोलने पर 50 रुपये का जुर्माना था | हालाँकि कोई माई का लाल नहीं था जो इन अभिभावकों से ये जुर्माना वसूल सके | पिताजी तो फालतू में गाली तक न देते थे पैसे तो दूर की कौड़ी थी | फिर भी अंग्रेजी के नाम पर सख़्ती तो थी | ऊपर से 5 में से 4 विषय अंग्रेजी में ही थे, बस ये हिंदी का बवाल ही हिंदी में था| कितना अच्छा होता अगर हम हिंदी भी अंग्रेजी में पढ़ रहे होते | हालाँकि आजकल चैटिंग के ज़माने ने वो भी मुमकिन सा कर दिया है |

ख़ैर जाने दो साहब, अपनी परेशानियाँ कम थोड़े ही थी | अगस्त आ गया था और परेड की तैयारी भी शुरू हो गयी थी, ऊपर से गर्मी, और ऊपर से ये सरप्राइज टेस्ट| चौथी कक्षा में पढ़ने वाले हर बच्चे को पता था कि नारकीय जीवन किसे कहते है| मैं अपना बस्ता उठा ही रहा था की पीछे से इन्क्बाल की आवाज़ आयी; "संजू ! मैडम स्पेलिंग टेस्ट ही लेंगी| भाई बता देना कुछ | पिछले तीन टेस्ट के पेपर पर खुद ही पापा के साइन मार के ला रहा हूँ | अबकी बार तो मैडम सीधा पापा को बुलाने बोलेंगी | बहुत कूटाई होगी भाई | प्लीज अच्छे से पढ़ के आना |"

बेचारे की भी बड़ी मार्मिक कहानी थी | क़ादिर चाचा बच्चन जी के बड़े फैन थे - कविता वाले ! उनकी हरकतों से प्रभावित होकर ही इन्होने अपनी संतान का नाम रखा - 'इन्क्बाल' या जो भी कहते हो उसको हिंदी में | नाम में इतना वजन था की खुद बच्चन जी भी इसे संभाल नहीं पाए और बेटे का नाम अमिताभ रख दिया | अब क़ादिर चाचा फैन थे लेकिन इतने भी नहीं की बिरादरी से बाहर हो जाये | बस अपने भाई का नाम तब से इन्क्बाल ही रह गया | सुना है मुझे छोड़ बाकी बच्चो से तो नाम ढंग से बोला भी नहीं जाता | एक बार मधु मिश्रा मैडम ने उसे प्यार से इन्क्बाल ज़िंदाबाद बोला | बच्चो से बोला नहीं गया तो किसी ने "इंक कलम और दवात" बोल दिया | तब से बेचारा इसी नाम से विख्यात है |

स्कूल से घर दूर नहीं था और मेरे घर से इन्क्बाल का घर और भी पास | दोनों दोस्त साथ ही आते जाते थे | रास्ते में सड़क, दुकान, प्लेग्राउंड, पार्क, बस स्टॉप, ट्रांसफार्मर, मधु मिश्रा मैडम का ट्यूशन सेंटर, सब मिलता था | नहीं मिलता था तो बस प्रिया का घर जो रास्ते से बिलकुल उलट था | इस बात का हम दोनों को ही मलाल था लेकिन कभी जताया नहीं | अच्छी बात ये थी की उतनी प्रचंड गर्मी में भी हमे थोड़ा घूमने का मन करता था और हम थोड़ा लम्बा रूट लेते हुए प्रिया की गली से होकर गुज़रते थे | दोस्ती लम्बी और अच्छी थी हमारी | इन चार सालो में 4-5 बार मैं उसकी पॉकेट फाड़ ही चूका था और वो 5-4 बार मेरी पॉकेट पर "इंक कलम और दवात" फेंक चूका था | ये वो दिन होते थे, जब घर में घुसते ही मम्मी "मेरा राजा बेटा" से हटकर "हे भगवान, नाशपीटा, नालायक़" जैसे शब्दो से स्वागत करती थी |

आज रास्ता लम्बा लग रहा था | सड़क पर थोड़ी चहल पहल कम हो गई थी कुछ दिनों में | हम रास्ते से पत्थर उठा के आस पास के स्ट्रीट लाइट्स के खम्बों पर निशाना लगाते जा रहे थे | सड़क थोड़ा सुनसान था तो इस बात का सुकून था की घर पर कोई चाचा मामा आकर चुगली कर देंगे | धुप भी आज ज़्यादा थी, थोड़ी दूरी पर ही हमारा फेवरेट हैंगऑउट प्लेस था | मोहल्ले का बस स्टॉप, एक ढांचा था खंडहर सा मानो गुलज़ार की कविता हो | दिखने में आड़ी टेढ़ी लेकिन काम की | हमने सोचा कि एक बार अटेंडेंस यहाँ भी लगा दे | वही एक टूटे से चबुतरे पर बैठ कर मैं पानी पीने लगा | गर्दन में लटकी वाटर बोतल मानों ओलिंपिक का मैडल लगता था | घर पहुँच कर जब तक माँ अपने हाथ से न उतारे तब तक ऐसे ही झूलता रहता था गले में | आज बस स्टॉप की दीवार पर कुछ लिखा था | बड़ा बड़ा, कत्थई रंग से | इन्क्बाल वो पढ़ने की कोशिश कर रहा था | "सौगंध राम की खाते है, मंदीर वही बनाएंगे |"

मैंने भी पढ़ने की कोशिश की | अगल बग़ल भी देखा, बस उतना ही लिखा था | मैं थोड़ी दिमागी कसरत करते हुए बोला, "भाई कोई दोहा है, जैसे की हमारी स्कूल की दीवारों पर लिखी है |"

"बस एक लाइन?" इन्क्बाल अभी भी करमचंद बना हुआ था, थोड़ी देर सोच के मैं बोला "पॉटी आ गयी होगी लिखते लिखते| मेरे घर के दरवाज़ों को पेंट करने बबलू पेंटर आया था, उसने भी चौखट आधा रंग के छोड़ दिया था | पापा ने पूछा तो बोला की पॉटी लग गयी थी उसको |"

"नहीं नहीं | कही मंदिर बन रहा हैं| स्कूल के पीछे बन जाए तो मज़ा आ जायेगा| दुर्गा पूजा के मेले में उधर ही घुमा करेंगे | स्कूल से निकल के सीधे समोसा चाट खाने जायेंगे |" इन्क्बाल की आँखों में चमक आ गयी थी | मुझे भी उसका आईडिया पसंद आ रहा था | रास्तें भर बस इसी बात की टेंशन थी की घर आकर अब कुछलोग चंदा मांगेंगे | मम्मी मुझे किस्मी टॉफ़ी के लिए एक रुपया नहीं देती और चंदा वालो को 50 रुपये दे देगी | घोर अन्याय है |

अगले दिन मधु मिश्रा मैडम का मूड बिलकुल नीम के पत्ते जैसा था | सरप्राइज टेस्ट तो लेने से मना कर दिया लेकिन ब्लैकबोर्ड पर बुला कर सबसे हिंदी के कठिन शब्द लिखवा रही थी | जो भी गलत लिखता उसे दो डस्टर हथेली पर और पूरी क्लास ख़त्म होने तक मुर्गा बनना था | मुझे मैडम ने चार डस्टर मारे और हाथ खड़ाकर बेंच पर खड़ा करवा दिया | और क्लास से शेम शेम बुलवाया | सबने बोला तो कोई बात नहीं लेकिन जब प्रिया भी सबके साथ बोलने लगी तो ऐसा लगा की थोड़ा और ऊँचा कूद कर पंखा तोड़कर मैडम सर पर रख दू | बहुत दुःख हुआ भाई | ऊपर से मेरे पीछे बैठा इन्क्बाल सारा टाइम हस रहा था |

फिर स्कूल की घंटी बजी |

घर लौटते इन्क्बाल ने बोला, "आज तो बस स्टॉप वाले दोहे ने बचा लिया नहीं तो ज़िन्दगी में कभी "सौगन्ध" की स्पेलिंग नहीं लिख पाता | संजू तूने ठीक से पढ़ा होता तो मंदिर की स्पेलिंग भी वही लिखी थी | बेकार में बेंच पर खड़ा नहीं होना पड़ता |"

"ठीक से ही पढ़ा था भाई इसीलिए तो गलत लिख आया| दीवार पर ही गलत लिखा था| पागल साले मन्दिर की स्पेलिंग तो ठीक से लिख लेते|" मैं खीजते हुए बोला | अभी तक दिमाग में प्रिया के मुँह से निकला हुआ वो शब्द कांटे की तरह चुभ रहा था |

"शेम! शेम!"


आज 25 साल हो गए हैं | ख़बर आयी है की मेरे आराध्य के लिए मंदिर बन रहा हैं| अब उन्हें अपने ही शहर में किराएदार बनकर नहीं रहना पड़ेगा | एक और भी अच्छी ख़बर यह है कि इन्क़लाब के साथ दोस्ती आज भी वैसे ही है, बस उसका नाम बोलना सीख गया हूँ | हर साल दूरियाँ बढ़ाने वाली खबरें तो दूर ले जाए, उससे पहले दिवाली और ईद आ जाती है| फिर क्या, मिलते है, गपियाते है और नयी सरकार और पुराने प्यार के बीच न जाने कितनी चीज़े बतियाते हैँ| कभी कोई मुश्किल या राजनीतिक संवाद में भी हास्यरस छूटता नहीं हैं| और नहीं छूटता बचपन का वो स्कूल और उसमे लटकी खुशियाँ फैलाती स्कूल की घंटी |

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