तुम्हारी मोहब्बत से अब कोई शिकायत नहीं है
- Admin

- Jun 3, 2020
- 2 min read

तुम्हारी मोहब्बत से अब कोई शिकायत नहीं है |
खत का मौसम गया, फ़ोन का मौसम गया,
Chat के notification की भी मुझपर इनायत नहीं है,
दो मिनट साथ भी नहीं बैठते तुम, ए हमसफ़र
तुम्हारी मोहब्बत से अब कोई शिकायत नहीं है।
वो दौर भी देखा जब तुम स्कूल जाती थी,
तुम्हे आते हुए देख बेमतलब मुस्कान आती थी,
जब तुम पढ़ रही थी, हम समझ रहे थे
इश्क़ और हुस्न में यूँही फस रहे थे,
चोरी चोरी तो तुम्हे सब देखते थे
पर तन्हाई में भी तुम्हे हम देखते थे,
एक बार मुझे देख कर तुमने यूँ मुस्कुराया था
इशारा था या मोहब्बत थी, कुछ समझ नहीं आया था,
फिर एक दिन किसी गैर का हाथ थाम चल दिए थे तुम
पलटकर देखा भी नहीं की कितने बेबस खड़े थे हम,
चलो माना की मुझसे कोई निकम्मा निहायत नहीं है
और तुम्हारी मोहब्बत से अब कोई शिकायत नहीं है|
बचपन को छोड जब तुमने श्रृंगार अपनाया था
तुम्हारे बारे में मोहल्ले के लड़को ने बताया था,
कि छत पर शाम को एक परी निकलती है
सूरज के ढलने तक, वो यूँ ही टहलती है,
कभी सोचा की तुम्हारी गली में इतना शोर क्यों होता था
कभी साइकिल, कभी स्कूटी का हॉर्न क्यों होता था,
हमउम्र थे तुम्हारे इसलिए हम साथ चल नहीं पाए
जब रिश्ता निकला तुम्हारा, तो हम खुद को बदल नहीं पाए,
वहा थे दौलत, शोहरत, बंगला और गाड़ी
सेहरा लिए कर रहा था कोई घोड़े की सवारी,
यहाँ दहलीज़ पर अख़बार, अख़बार में इश्तेहार,
उसमे भी नौकरी न मिलने की थी लाचारी
तुम्हारी रुख़सती भी न देखे, ऐसी कोई रिवायत नहीं है,
तुम्हारी मोहब्बत से अब कोई शिकायत नहीं है|
ज़िन्दगी जब यूँ ही कमबख्त हो गयी थी
घर से दफ़्तर, फिर घर तक व्यस्त हो गयी थी,
घरवालों से दूर जब हम अनजान शहर में थे
सब पराये थे, मशरूफ़ थे, अजीब से दहर में थे,
फिर एक दिन तुम आयी थी उस गुलाबी लिबास में
और बताया नाम अपना बड़े अंदाज़ में,
दफ़्तर का काम भी अब इतवार बन गया था
गर्मी में जलता सूरज भी शाम बन गया था,
चर्चे जब हुए हमारे, तो बदनामी भी हुई
देख के जलने वालो की थोड़ी शैतानी भी हुई,
मेरी जगह तुमने उनकी बातों को तवक्कुफ़ दिया
बाहे फैला खड़ा था आगे, तुमने पीछे का रुख़ किया,
थोड़ा हौसला रख लेती तो साथ होते
मैं होता, तुम होती और हमारे ख्वाब होते,
यूँ दिल न टूटे किसी का ऐसी कोई हिदायत नहीं है,
तुम्हारी मोहब्बत से अब कोई शिकायत नहीं है|
बढ़ती उम्र के साथ कद घट गया है तुम्हारा
लगता है अच्छे से वक़्त कट गया है तुम्हारा,
मेरी न पूछो, मैं आज भी आवारा हूँ ...
उसने जाते वक़्त कहा था, कि अब मैं कुंवारा हूँ,
न जाती तुम तो फिर ये कभी एहसास न होता,
जितनी तुम थी, उतना ही मैं किसी का ख़ास न होता,
मेरी दीवानगी की इन्तहा उसकी सादगी से काम थी
जिसने मुझको बेहतर समझा वो मेरी बेग़म थी,
अब घुटने में दर्द रहता है और सीने में जलन
आँखों में नमी रहती है और ख्वाबो में कफ़न,
मगर ज़िन्दगी की दिवाली में बहोत किया है, बहोत जिया है
शरारत है, शिकायत है, मुहब्बत का भी एक दिया है,
अब कुछ पल पास बैठो और बताओ अपनी कहानी,
शुरू करना वहा से जब ढल रही थी जवानी,
या छोड जाओ फिर से गर ये भी किफ़ायत नहीं है,
क्यूकि तुम्हारी मुहब्बत से अब शिकायत नहीं है||



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