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मुहब्बत अपनी जगह है और बिरयानी अपनी

  • Writer: Admin
    Admin
  • Jun 1, 2020
  • 3 min read

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चंद्रा अभी भी मुझे एकटक आश्चर्य से देखे जा रहा था |

"भाई देख मुहब्बत अपनी जगह है और बिरयानी अपनी |" मैंने सोचा शायद ऐसे व्हाट्सप्प के फ़ॉर्वर्डेड लाइन्स से माहौल ठंडा हो | लेकिन दांव उल्टा पड़ गया, चंद्रा का पारा दिल्ली की गर्मी से ज़्यादा बढ़ गया था और उसने वो कह ही दिया जो शायद ज़िन्दगी में मुझे कभी न कहता, "अच्छा हुआ छोड़ गयी तुझे | साले देख अपने आप को नरक की औलाद | मेरी बहन ने गलती की थी बहोत बड़ी |"

मैं कुछ बोल पाता इससे पहले ही वो दरवाज़े से सनसनाता हुआ निकल गया | चंद्रा की बातें दिल में अभी भी चुभ रही थी, और उससे भी ज़्यादा तकलीफ़ इस बात की थी कि वो लड़की अब हमेशा के लिए परायी होने जा रही थी | वैसे तो मैं कभी रोता नहीं लेकिन उस दिन शायद गर्मी ज़्यादा थी | पसीने की दो तीन बूंदे आँखों से भी टपक पड़ी और यादों का फ़व्वारा दिमाग पर हावी हो गया |

उन दिनों स्कूल, मोहल्ले और लड़कियों में फेमस था तो दिमाग में चर्बी भी बहोत छाई थी | रिलेशनशिप्स में एक दो बार जाके सफलतापुर्वक एक्सपीरियंस सर्टिफिकेट लेके लौट भी चूका था लेकिन उसके लिए मैं पहला प्यार था | यश चोपड़ा की फिल्मो के किरदारों से वो मुझे और खुद को देखती थी | मासूमियत ऐसी की उसके लिए सब अच्छा था और जो गलत भी है वो किस्मत की बात थी | किस्मत तो मेरी भी थी, दोस्त की शादी में पहनने को कुछ अच्छा नहीं था तो वो साल भर की जमापूंजी और ट्यूशन फीस के पैसों से नया जैकेट ले आयी | ब्रांडेड | उस दिन ज़िन्दगी में पहली बार पहना था ब्रांडेड कपड़ा | दो ही लोग चमक रहे थे शादी में, एक दूल्हा और दूसरा मैं | मैंने पूछने की भी ज़ेहमत नहीं उठाई कि इतना महंगा गिफ्ट कैसे लाई | अब वो ट्यूशन टाइम में ही मिला करती थी, बोलती कि २-३ महीने के बाद ट्यूशन ज्वाइन करेगी, अभी सर नए बच्चो के लिए पुराना कोर्स पढ़ा रहे है | घरवालों से छुपा कर हर दिन कुछ नया बनाकर लाती थी मेरे लिए | जिस दिन वो बिरयानी लाती उस दिन उसका खाने का मन नहीं होता था | क़िस्मत की मेहरबानी कि सारा खाना मुझे खाना पड़ता था | ज़िन्दगी में वो इतनी आसानी से आयी थी कि उसके जाने तक उसकी अहमियत का एहसास ही न हुआ | उन दिनों आशिक़ लड़को के लिए "प्यार का पंचनामा" ऐसे ही था जैसे माँ बाप के लिए "सावधान इंडिया"। हर जगह धोख़ा मिलेगा, किसी पर भी भरोसा मत करो | दिल हो या दरवाज़ा; अगली दस्तक फरेब की होगी | बस एक दिन किसी छोटी सी बात पर मैंने सब ख़त्म कर दिया, बात इतनी छोटी थी कि आज याद भी नहीं | बहुत रोई थी वो उस दिन | इतना भी नहीं कहा कि मैं पछताउँगा या वो कभी माफ़ नहीं करेगी, बस रोती रही |

२ साल बीत गए | मुहब्बतों का सिलसिला चलता रहा मेरे लिए, मगर उसके बाद कही सुकून नहीं मिला | किसी में उसकी नज़र ढूंढता तो किसी में उसका नज़रिया | कुछ छोड़ के चली गयी तो कुछ को मैं बर्दाश्त नहीं कर पाया | आज उसकी चौखट पर वही जैकेट पहने खड़ा था | घर के सामने ही बड़ा पंडाल लगा था | लोग बरात आने का इंतज़ार कर रहे थे | मैं दरवाज़े के पास खड़े होकर हिम्मत जुटा रहा था तभी उसकी सहेली आयी | अपने साथ वो मुझे उसके कमरे में ले गयी | बताना बेकार है की दुल्हन के जोड़े में वो कितनी ख़ूबसूरत लग रही थी | कुछ देर तो उसको बस देखता रहा, उसने भी कोई ऐतराज़ नहीं जताया |


मुस्कुरा कर बोली, “दो साल के बाद इतने करीब से देख रहे हो! कैसी लग रही हूँ?”

मैंने सकपकाते हुए बोला,"आज से पहले मैंने किसीको इतना खूबसूरत नहीं देखा। तुम्हे भी नही। " थोड़ी देर हमदोनो के बीच कुछ कहने के लिए नहीं बचा था। दरवाज़े पर के दस्तक़ हुई, चंद्रा दरवाज़े पर खड़ा हमदोनो को देख रहा था। फिर अपनी बहन की गीले आँखों को अनदेखा करते हुए बोला, "बारात आ गयी है, जयमाला के लिए बुला रहे है।" उसने मुझे वैसे ही ignore किया जैसे कुछ साल पहले मैं उसकी बहन को किया था।

वो सधे कदमो से दरवाज़े की तरफ जाने लगी, दरवाज़े और उसके बीच में मैं खड़ा था।वो इतने करीबआई की उसकी साँसोंकी आहट भी मुझे सुनाई दे रही थी, मेरे अहम् का पहाड़ तोअब मेरे ही कलेजे को दबा रहा था।गला इतना भारी था की कुछ बोल भी नहीं पाया, आँखों से ही माफ़ी मांगना चाहता था मगर उसमे भी आंसुओ के अलावा कुछ बाकी नहीं था।उसने आखिरी बार मेरी तरफ मुड़कर बोला, "बिरयानी खा के जाना, अच्छी बनी है।"

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