कहानी LOCKDOWN की !
- Admin

- Aug 5, 2020
- 3 min read

कहानी lockdown की है,
छोटी सी है, लेकिन बड़े टाउन की है|
शहर की हाशिये पर एक अँधेरी झोपड़ी थी
उसमे एक टूटा पंखा और दो छोटी टोकरी थी,
इस ज़ायदाद के मालिक एक couple थे
Tragedy के दुनियाँ में वो सबसे सफल थे |
नाम होते हुए भी सब उनको मज़दूर कहते थे
पैसा और लोग, दोनों उनसे दूर रहते थे,
Social distancing, वो भी follow करते थे
पुलिस, डॉक्टर, दुकानदार; वो सबसे डरते थे |
वो सुबह उठते थे, फिर अपनी टोकरी उठाते थे
चौराहे पर एक Signal था, वो वही जाते थे,
Signal पर बेचने के लिए कुछ सामान डालते थे
शाम तक टोकरी खाली हो, बस यही ख़्वाब पालते थे |
वो पसीना बहाते थे, दिन भर कमाते थे
अपनी दिहाड़ी से, फिर वो शाम का चूल्हा जलाते थे,
घर में बीमारी थी, लकिन बहोत ज़िम्मेदारी थी
दो बच्चे भी थे, और उनकी किलकारी थी |
शहर, शोर, धुप, धुआँ, गर्मी, उन्हें सब कुछ भाता था
जब कोई Car का शीशा उतार उनका सामान ले जाता था,
फिर एक दिन ये देखकर उनका दिल हैरान हो गया
सड़के सुनसान और ट्रैफिक Signal वीरान हो गया |
शहर में एक बीमारी आयी है, उसने ही ये तबाही मचाई है
स्कूल, अस्पताल, दफ्तर, होटल; सब पर आफत छाई है,
बीमारी इतनी ज़िद्दी है कि, खांसते ही रह जाओगे
पास आये तो डर जाओगे, हाथ लगाओ तो मर जाओगे |
अब तक उनका वक़्त बुरा था, पर गुज़र रहा था
किस्मत ख़राब थी, लेकिन पेट भर रहा था,
आज घर में खाने को एक दाना नहीं था
रोते हुए बच्चो का कोई ठिकाना नहीं था |
बाप ने पोटली उठाई और बोला घर चलते है
एक ज़मींन है छोटी से, जिससे चावल निकलते है,
माँ ने अपने बच्चो को देखा, फिर बोली रोते हुए
न रेल न गाडी, क्या बच्चे कभी भूखे पैदल चलते हैं?
आज सड़क खाली और सन्नाटा बेमिसाल था
मेरी गाडी की तरह दोपहर भी लाल था,
AC ऑन था पर सूरज के peer pressure में था
"Life is hard" मैं ये सोच के बेहाल था |
कोरोना से बहोत सारा खाली time और
Office से 'work from home' मिल गया था,
सोशल मीडिया से बहोत सारा ज्ञान और
'show-off' करने का आईडिया भी मिल गया था|
कुछ बिस्किट्स, दाल और साबुन की home delivery करवाया है
आज उनको किसी राह चलते को deliver करने का मन बनाया है,
फ़ोन भी नया लिया है, ताक़ि quality video बनाके पोस्ट कर सकू
फिर लोगो के कमैंट्स, लाइक्स, Aww और Wow बटोर सकू |
लेकिन ये गर्मी मेरा काम ख़राब कर रही थी
और आँखे किसी मजदूर की तलाश में भटक रही थी,
तभी सामने कुछ लोग दिखे, नंगे पैर और गंदे से
एक पोटली, दो टोकरी लिए, smelly अधनंगे से |
मैंने उनके आगे अपनी गाड़ी बड़े टशन में रोकी
जिसे देख सबसे पहले उनकी छोटी बच्ची चौकी,
AC ऑन था, मगर वीडियो के लिए फ़ोन मिल नहीं रहा था
तभी गाडी की शीशे से धीरे धीरे एक चेहरा चिपक रहा था |
मैं busy था, इसलिए उसको भगा नहीं पाया
जब फ़ोन मिला तो पलटकर उसकी तरफ आया,
मैं चिल्लाता उससे पहले वो शीशे से लगकर सो रही थी
शीशा ठंडा था, वो थकी थी और पहले से रो रही थी |
ये देखकर अचानक ही दिल बहोत बेचैन हो गया
अपनी complaining के ख़िलाफ़ ही complain हो गया,
मेरी आँखें नम और शर्म से झुक गयी थी
एक नदी पलकों के किनारे पर ठिठक गयी थी |
किसी की बेबसी को अपनी opportunity बना रहा था
और instagram पर उससे popularity कमा रहा था,
थोड़ी देर मैं और वो, दोनों निशब्द पड़े रहे
उसके माँ बाप भी किसी उम्मीद में वही खड़े रहे |
मैं लौट आया था सब राशन वही छोड़ के
और आज गाडी भी चलायी थी नंगे पाव से,
दिखावे की ज़िन्दगी का सामान बन गया था मैं
वीडियो तो बनी नहीं, पर अब इंसान बन गया था मैं |
बात दर्द की, दया की, स्नेह की, स्वाभिमान की है
और अपने ही ego से final showdown की है |
कहानी एक Lockdown की है ||



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